मुस्तफ़ा आपके जैसा कोई आया ही नहीं,
आता भी कैसे जब अल्लाह ने बनाया ही नहीं.
कोई सानी न है रब का न मेरे आक़ा का
एक का जिस्म नहीं एक का साया ही नहीं
मुस्तफ़ा आपके जैसा कोई आया ही नहीं,
आता भी कैसे जब अल्लाह ने बनाया ही नहीं.
कोई सानी न है रब का न मेरे आक़ा का
एक का जिस्म नहीं एक का साया ही नहीं
क़ब्र में जब कहा सरकार ने ये मेरा है
फिर फ़रिश्तों ने मुझे हाथ लगाया ही नहीं
ज़ुल्फ़ वल्लैल है रुख़ वद्दुहा मा-ज़ाग़ आँखें
इस तरह रब ने किसी को भी सजाया ही नहीं
लौट कर आ गया मक्के से मदीना न गया
कैसे जाता तुझे आक़ा ने बुलाया ही नहीं
जब से दरवाज़े पे लिखा हूँ मैं आ’ला हज़रत
कोई गुस्ताख़-ए-नबी घर मेरे आया ही नहीं
मुस्तफ़ा आपके जैसा कोई आया ही नहीं,
आता भी कैसे जब अल्लाह ने बनाया ही नहीं.
जब तलक पुश्त पे शब्बीर रहे ऐं फैज़ी
सर को सजदे से पयम्बर ने उठाया नहीं
शायर-ए-इस्लाम:
हज़रत शमीम रज़ा फ़ैज़ी
नअ’त-ख़्वाँ:
हज़रत शमीम रज़ा फ़ैज़ी
मुस्तफ़ा आप के जैसा कोई आया ही नहीं / mustafa aapke jaisa koi aaya hi nahin | By Shamim Raza Faizi
Leave a comment